यादों का तहखाना
यादों का तहखाना
आज दिल का तहखाना टटोला तो।
ना जानें कितनी यादें द़बी थी।
वह सगाई वाली पहली मुंदरी।
जो नज़ाकत से मेरे हाथों में सज़ी थी।
मोती गोटा लगा वो लाल लहंगा चूनर।
सलवटों में लिपटा एक पैकेट में रखा था।
जिसे पहन मैं बनी थी दुल्हन।
सोलह श्रृंगार से मेरा तन मन सजा था।
वो मामा के यहाँ से फेरों वाली साड़ी।
का रंग अभी भी दमक रहा था।
मायके की यादों से आज फिर सरोकार हुआ था।
माँ पिता के हाथों से दिये गये वो गहने।
चमक चमक कर मुझे दिखा रहें थे।
तु हमारी प्यारी बेटी आज भी मुझे चिढ़ा रहे थे।
कहाँ छुप गये था ये जादू भरा प्यारा पिटारा।
भाई बहनों की जो शरारतो से भरा था।
सखियाँ सहेली वो मुहल्ला अपना।
जहाँ छाप कदमों की आहट से धूल उड़ाती थी।
वो गलियाँ बाबुल की आकर ससुराल से जुड़ी थी।
बेटी से बन बहू मैं ना जाने किन किन रिश्तों में ढली थी।
खुशियाँ और गम की उन घड़ियों को ।
समय इस दिल के तहखाने में दबा देता था।
महसूस कर आज इस की सतहों को।
करीब पा उन स्मृतियों को मैं फिर से जी उठीं थी।
नीलम गुप्ता🌹🌹 (नजरिया )🌹🌹
दिल्ली
Zulfikar ali
21-May-2021 10:28 AM
बहुत खूब 👍
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Mr.RED(मनोरंजन)
20-May-2021 08:58 PM
Mast
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